बीते दिनों दिल्ली में हिंसा से काफी जान-माल का नुकसान हुआ. नफरत भरे संदेशों और अफवाहों से उन्माद भडका जिसे नियंत्रित करने में कडी मशक्कत करनी पटी संसद में विपक्ष इस मसले पर आक्रोशित है और सरकार से सवाल पछ रहा है दिल्ली पलिस आयक्त का भी कहना है कि बीते 23 और फरवरी को दंगों से संबंधित नीति ट्वीट तेजी से फैल रहे थे. लेकिन, तिम अपेक्षित कालाई ही की काफी खबरों और नफरत फैलाने का माध्यम बन रहे इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर शिकंजा कसने की तैयारी में है. सरकार बाकायदा दिशा-निर्देश जारी करने की योजना बना रही है. गह मंत्रालय ने इस महे पर अहम बैठक की, जिसमें गृह सचिव के साथ सूचना एवं प्रौद्योगिकी, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों समेत गूगल, ट्विटर, फेसबुक, व्हॉट्सएप और टिकटॉक के प्रतिनिधि शामिल हुए. भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार कुछ कड़े फैसले ले सकती ह. डिजिटल दुनया भागालक सामाआ है. डिजिटल दुनिया भौगोलिक सीमाओं स पर है, जिस पर नियत्रण आसान नहा है. इस आभासी दुनिया का समस्याए वास्तावक जावन पर भा असर डालता हैं. यूट्यूब, गूगल, व्हॉटसएप, फेसबुक ह. यूट्यूब, गूगल, व्हाट्सएप, फेसबुक आर ट्विटर सावजनिक प्लेटफार्म है, जहा पोन, फेक न्यूज, हिंसा और सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वाली खबरें नीति साजिशन भी साझा की जाती हैं. इसे चिहित करने और उस पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों की है. हालांकि, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए सरकार को ऑनलाइन कंटेंट पर निगरानी रखने और उसे हटाने का अधिकार देती है. हाल क दिना में फजी खबरों से सबधित शिकायतों के निस्तारण में ट्विटर समेत विभिन्न कंपनियों का रवैया संतोषजनक नहीं रहा है. हालांकि, फेसबुक, गूगल ने मामूली सुधार किया है. आइटी अधिनियम के संशोधनों के लागू होने के बाद इन कपनियों पर कड़े प्रावधान लगाये जा सकते हैं. ज्यादातर सोशल मीडिया कपानया कंपनियां अपनी कंटेंट पॉलिसी घोषित करती हैं, जिसमें धमकी भरे संदेशों, हिसा बढ़ानेवाले बयानों को प्रतिबंधित करन का दावा तो करता है, लकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं नेताओं के वास्त नफरती भाषण, आपत्तिजनक वीडियो व संदेश इन माध्यमों पर तैरते रहते हैं इंटरनेट का दुरुपयोग लोकतांत्रिक व्यवस्था में अविश्वसनीय तरीके से बाधा पहुंचा रहा है. दुनियाभर में महसूस किया जा रहा है कि यह व्यक्तिगत अधिकारों, तमाम राष्ट्रों की सुरक्षा व संप्रभुता के लिए संभावित खतरा है. निजता के अधिकारों को सुरक्षित करने और अवांछित तथा अवैध गतिविधियों पर निगरानी के लिए सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकना आज के दौर की सबसे बड़ी चुनौती है. फर्जी खबरों की समस्या अनियंत्रित हो जाये, इससे पहले सरकार के साथ चुनाव आयोग को भी चेतने की जरूरत है, तभी इस संभावित समस्या से आम नागरिकों और देश को बचाया जा सकेगा.
फजी खबरों पर सख्ती