REE यस बैंक के मामले में ऐसा नहीं। यदि वह डूब जाए तब भी हमारी अर्थव्यवस्था पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। यह सितंबर 2017 की बात है। यस बैंक अपने बचत खाते में एक लाख रुपये तक की जमा राशि पर पांच प्रतिशत ब्याज दे रहा था। उसी अवधि में भारतीय स्टेट बैंक यानी एसबीआइ की ब्याज दर मात्र 3.5 प्रतिशत थी। यस बैंक की ऐसी लुभावनी दर से आकर्षित होकर तमाम जमाकर्ताओं और म्यूचुअल फंडों ने उसमें अपनी रकम जमा कराई। आम जमाकर्ता की तुलना में म्यूचुअल फंड की स्थिति भिन्न होती है। उनसे अपेक्षा की जाती है कि उन्हें वस्तुस्थिति की पर्याप्त जानकारी होगी और वे सोच-समझकर निवेश करेंगे, लेकिन आज म्यूचुअल फंड शिकायत कर रहे हैं कि उनकी रकम नहीं डूबनी चाहिए। राणा कपूर ने 'हाई रिस्क, हाई गेन' का दांव खेला था आखिर उनसे पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने बिना जांच किए लालचवश यस बैंक में निवेश क्यों किया? यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर ने 'हाई रिस्क, हाई गेन' का दांव खेला था। उन्होंने ऊंची ब्याज दरों पर ऐसी कंपनियों को ऋण दिए जिन्हें दूसरे बैंक ऋण नहीं दे रहे थे, क्योंकि इन कंपनियों की हालत खस्ता थी। उनका यह दांव चल नहीं पाया। इससे यस बैंक की नकदी समाप्त होती गई और वह संकट में फंस गया। यस बैंक नई पूंजी जुटाने में सफल नहीं हुआ जिससे समस्या और उलझती गई भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई ने हालात को भांपते हुए पहले ही कुछ कदम उठाए थे। लगभग एक वर्ष पूर्व राणा कपूर को उनके पद से हटा दिया था और अपने प्रतिनिधि को यस बैंक बोर्ड में नियुक्त किया ताकि उसके बारे में सही जानकारी रिजर्व बैंक को मिलती रहे। रिजर्व बैंक ने यह दबाव भी बनाया कि यस बैंक किसी नए निवेशक को तलाशे ताकि उसके पूंजी निवेश द्वारा संदिग्ध कंपनियों को दिए गए कर्ज के चलते पूंजी का अभाव दूर हो सके। असल में बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ऋण के लिए एक अनुपात नियत होता है। जैसे यदि आपकी पूंजी 20 रुपये है तो आप 100 रुपये का ऋण दे सकते हैं। यदि आपकी पूंजी 200 रुपये है तो आप 1000 रुपये का ऋण दे सकते हैं। इसे पूंजी पर्याप्तता अनुपात' कहा जाता हैरिजर्व बैंक प्रयास करता रहा कि यस बैंक द्वारा पूंजी जुटाई जाए, परंतु वह नई पूंजी जुटाने में सफल नहीं हुआ और इस तरह उसकी समस्या सुलझने के बजाय और उलझती ही गई।
जब संकट ने बड़ा रूप ले लिया तब रिजर्व बैंक को कुछ कदम उठाने पडे जब इस संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया तब रिजर्व बैंक को कुछ कदम उठाने पड़े। इसके तहत छोटे जमाकर्ताओं के लिए बैंक से अधिकतम निकासी की सीमा 50,000 रुपये तय कर दी गई है। सरकार ने पहले ही व्यवस्था कर रखी है कि बैंकों में पांच लाख रुपये तक की जमा रकम का बीमा सभी बैंकों को कराना पड़ता है। यस बैंक के जिन जमाकर्ताओं ने पांच लाख रुपये तक की रकम जमा करा रखी है उनकी रकम संकट में नहीं है। इस रकम को वापस मिलने में कुछ समय जरूर लग सकता है, लेकिन रिजर्व बैंक द्वारा स्थापित डिपॉजिट गारंटी इंश्योरेंस कॉरपोरेशन इन जमाकर्ताओं की पूंजी को वापस देने के लिए वचनबद्ध है। भारत सरकार और रिजर्व बैंक को धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने छोटे जमाकर्ताओं द्वारा जमा की गई रकम का बीमा हाल में ही एक लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये।
रिजर्व बैंक ने यस बैंक के अंदरूनी हालात को किया सार्वजनिक रिजर्व बैंक ने संकट के सामने आने से पहले ही दसरा अच्छा कार्य यह किया कि यस बैंक के अंदरूनी हालात को सार्वजनिक कर दिया। जैसे राणा कपर को उनके पद से हटाना। यह सुर्खियों में भी छाया। बेहतर होता कि तब रिजर्व बैंक ऐसी जानकारियों को और तल देता। ऐसा न करने के पीछे यही प्रतीत होता है कि वह नहीं चाहता था कि जल्दबाजी में किसी तरह की अफरातफरी से हालात और खराब हो जाएं। यस बैंक में जमा म्यूचुअल फंडों की राशि को डूबा माना जाएगा जहां तक म्यूचुअल फंडों की बात है तो फिलहाल रिजर्व बैंक ने यही व्यवस्था दी है कि यस बैंक में जमा उनकी राशि को डूबा माना जाएगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि ऐसी जमा राशि को रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार यस बैंक की पूंजी के समकक्ष माना जाता है। जिन म्यूचुअल फंडों ने ज्यादा लाभ के मोह में रकम यस बैंक में जमा कराई वे इस तथ्य से अच्छी तरह परिचित थे कि उनके द्वारा जमा कराई गई रकम की गणना यस बैंक की पंजी में की जाएगी और संकट की स्थिति में उन्हें इसे गंवाना पड़ सकता है। इसके बावजूद इन फंडों ने यस बैंक में निवेश किया। ऐसे में रिजर्व बैंक द्वारा उनके निवेश को संरक्षण न दिए जाने का फैसला सही दिखता हैरिजर्व बैंक ने म्यूचुअल फंडों को उनके हाल पर छोड़ दिया यह म्यूचुअल फंडों की अपनी कमजोरी है जिसका खामियाजा उन्हें ही भुगतना चाहिए। इस पूरे मामले में रिजर्व बैंक ने तीन स्तरों पर अपनी सार्थक भूमिका निभाई। एक यह कि छोटे ग्राहकों का बीमा कराया, दूसरा यह कि बैंक के अंदरूनी हालात को सार्वजनिक किया और तीसरा यह कि म्यूचुअल फंडों को उनके हाल पर छोड़ दिया। मूल प्रश्न यह है कि क्या यस बैंक को बचाना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी है? कुछ संस्थाएं ऐसी होती हैं जिन्हें सिस्टमैटिकली इंपोर्टेट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन यानी संस्थागत महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थान माना जाता है। देश का सबसे बड़ा वाणिज्यिक बैंक एसबीआइ इसी श्रेणी में आता है, क्योंकि उसके तंतु अर्थव्यवस्था में चौतरफा फैले हैं। उसके पास दूसरे बैंकों की भी पूंजी हो सकती है। यदि यस बैंक डूब जाए तब भी हमारी अर्थव्यवस्था पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा ऐसी स्थिति में यदि एसबीआइ पर संकट आता है तो समूची बैंकिंग व्यवस्था मुश्किल में पड़ सकती है। यस बैंक के मामले में ऐसा नहीं। यदि वह डूब जाए तब भी हमारी अर्थव्यवस्था पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। वास्तव में बाजार का दस्तूर ही यही है कि उसमें कोई सफल होता है और कोई असफल। यदि हम किसी संस्था को असफल ही नहीं होने देंगे तो नई और अन्य संस्थाओं के लिए सही आचरण का प्रोत्साहन समाप्त हो जाएगाइसीलिए यस बैंक को बचाने की जुगत में नहीं पड़ना चाहिएयस बैंक के डूबने से निजी क्षेत्र के बैंकों को बदनाम करने की जरूरत नहीं यस बैंक के डूबने से निजी क्षेत्र के बैंकों को बदनाम करने की जरूरत नहीं। यदि 10 निजी बैंकों में से एक नाकाम हुआ है तो वास्तव में 10 सरकारी बैंकों में नौ इसी श्रेणी में आ चुके हैं। वे इसलिए उस स्थिति में नहीं दिखते, क्योंकि सरकार उनमें रकम डालती रहती है। बिल्कुल वैसे जैसे आइसीयू में मरीज को जीवित रखा जाता है। ऐसे में यदि यस बैंक को नहीं बचाया जाएगा तो यह चुनिंदा ‘संस्थागत महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थानों को छोड़कर शेष सरकारी बैंकों के लिए एक सीख होगी कि उन्हें बचाने के लिए लिए करदाताओं के पैसों का उपयोग नहीं होगा।